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आखिर एक ही देश के नागरिकों के लिये सरकार की दोहरी सोंच क्यों ?

दिल्ली , मुंबई सहित देश के तमाम बड़े शहरों में बिहार - यूपी के लाखों की संख्या में ऐसे लोग रहते है जिनका पेशा पंक्चर बनाना , जूते पॉलिश करना , कंस्ट्रक्शन लाइन में लेबर का काम , रिक्शा - ऑटो चलाना , गोदामों में डेली बेजेज पर काम करना इत्यादि है।इस पेशे में कोई मासिक सैलरी नहीं मिलता बल्कि दैनिक कमाई पर ये अपना घर - परिवार चलाते है।


एक तस्वीर है जब मोदी साहब ने रात में आकर अचानक से लोकडाउन या कर्फ्यू लगाने की घोषणा कर दिया फिर ये मजदुर मजबूरीवश पैदल ही अपने घर के लिये चल पड़े और दुसरी तस्वीर में है उन भारतीयों की जो कोरोना प्रभावित देशों में फँसे हुए थे जिन्हें भारत सरकार ने वायुयान के माध्यम से भारत लाया और इसी के साथ भारत में कोरोना भी अधिक संख्या में आया।

पैदल जाते मजदुर 

प्लेन से आते भारतीय



देखिए पहले तो इस बात को समझिए की ये कोरोना भारत में अचानक से नहीं आ गया बल्कि दिसंबर से ही यह वैश्विक स्तर में चर्चा में है और भारत में भी पहला केस 30 जनवरी को ही आया।भारत सरकार के पास इस समस्या से निपटने और इसको रोकने हेतु पर्याप्त समय था लेकिन वो समय सरकार ने दिल्ली चुनाव , दिल्ली दंगा , मध्यप्रदेश में सरकार गिराने , मोदी साहब के मित्र ट्रंप का स्वागत करने और मोदी साहब के लिट्टी चोखा खाकर बिहार के चुनाव को साधने में बर्बाद किया गया।

और अब इसका खामियाजा पुरा देश तो भुगत ही रहा है लेकिन सबसे अधिक पीड़ा अगर किसी को है तो वो ये श्रमिक - असंगठित मजदूरों को है जो आज रोटी तक के लिये तरस रहें है। पांव पैदल लंबी दूरी तय करने को मजबुर है।और सरकार इनके लिये कुछ नहीं कर रही है जबकी इनका मदद किया जा सकता है।अभी भी समय है जब इन लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुँचाकर बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती है।

इस पोस्ट के माध्यम से भारत सरकार से निवेदन है की आपने जो लापरवाही किया , आपने जो गलतियाँ की है वो अब बदला नहीं जा सकता है लेकिन अभी भी समय है जब आप इन लोगों का मदद कर सकते है । इन्हें इनके गाँव - घर तक पहुँचा सकते है जहाँ ये कम से कम नून रोटी या मार - भात खाकर भी इस विपदा के समय को काट लेंगे। कृपया इनके लिये कुछ करें मोदी जी ...ये मजदुर दिन - रात मोदी - मोदी करते है , आपको वोट भी करते है और आप वोट पाने के लिये तो कुछ भी करते है। इंसानियत ना सही आने वाले बिहार चुनाव के लिये ही इन बिहार के मजदूरों के दुखों को समझिए और इनके लिये कुछ करिए।

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